Sunday, 14 March 2010
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है - मिर्ज़ा गालिब
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है
देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले
नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है
गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को
हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है
हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर
ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है
दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म'आनी
ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं है
क़त्ल का मेरे किया है अहद तो बारे
वाये! अगर अहद उस्तवार नहीं है
तू ने क़सम मैकशी की खाई है "ग़ालिब"
तेरी क़सम का कुछ ऐतबार नहीं है
संकलक:प्रवीण कुलकर्णी
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हंस-दमयंती
Dhingana
an alcoholic
- Pravin Kulkarni
- Pune, Maharashtra, India
- Hi.. I am Pravin and I am an alcoholic....
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