Saturday 13 March 2010

हम तो हैं परदेस में - राही मासूम रज़ा


हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चांद
अपनी रात की छत पर कितना तनहा होगा चांद

जिन आँखों में काजल बनकर तैरी काली रात
उन आँखों में आँसू का इक, कतरा होगा चांद

रात ने ऐसा पेंच लगाया, टूटी हाथ से डोर
आँगन वाले नीम में जाकर अटका होगा चांद


चांद बिना हर दिन यूँ बीता, जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा, कैसा होगा चांद



संकलक:प्रवीण कुलकर्णी

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हंस-दमयंती

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