Saturday, 20 March 2010
आतां विश्वात्मकें देवें। येणें वाग्यज्ञें तोषावें।
तोषोनि मज द्यावें। पसायदान हें।।
जे खळांची व्यंकटी सांडो। तया सत्कर्मी रती वाढो।।
भूतां परस्परें पडो। मैत्र जीवाचें।।
दुरितांचें तिमिर जावो । विश्व स्वधर्मसूर्ये पाहो।।
जो जें वांछील तो तें लाहो। प्राणिजात।।
वर्षत सकळमंगळीं। ईश्वर निष्ठांची मांदियाळी।।
अनवरत भूमंडळीं। भेटतु या भूतां।।
चलां कल्पतरूंचे अरव। चेतना चिंतामणीचें गांव।।
बोलते जे अर्णव। पीयूषाचे।।
चंदमे जे अलांच्छन। मार्तंड जे तापहीन।।
ते सर्वांही सदा सज्जन। सोयरे होतु।।
किंबहुना सर्वसुखीं। पूर्ण होऊनि तिहीं लोकीं।।
भजिजो आदिपुरुखीं। अखंडित।।
आणि ग्रंथोपजीविये। विशेषीं लोकीं इयें।।
दृष्टादृष्टविजयें। होआवें जी।।
येथ म्हणे श्रीविश्वेश्वरावो। हा होईल दानपसावो।।
येणें वरें ज्ञानदेवो। सुखिया जाला।।
संकलक:प्रवीण कुलकर्णी
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हंस-दमयंती
Dhingana
an alcoholic
- Pravin Kulkarni
- Pune, Maharashtra, India
- Hi.. I am Pravin and I am an alcoholic....
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