Sunday, 28 February 2010
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले - मिर्ज़ा गालिब
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले ।
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन,
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले ।
मुहब्बत में नही है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले ।
ख़ुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा ना हो यां भी वही काफिर सनम निकले ।
क़हाँ मैखाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले।
संकलन:प्रवीण कुलकर्णी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हंस-दमयंती
Dhingana
an alcoholic
- Pravin Kulkarni
- Pune, Maharashtra, India
- Hi.. I am Pravin and I am an alcoholic....
No comments:
Post a Comment