Friday, 12 February 2010

संतान


तुम्हारी संतान तुम्हारी नहीं है
ये विश्व-प्राण की स्वयं अपने प्रति
जागृत होनेवाली आसक्ति के
पुत्र और पुत्रियाँ है
तुम्हारी संतान तुम्हारे माध्यम से तो
उत्पन्न हुई है,किन्तु,तुनसे नहीं
यह तुम्हारे साथ भलेही हो,
किन्तु तुम्हारी अपनी वस्तु नहीं है
तुम इसे अपना प्यार तो दे सकते हो
किन्तु विचार नहीं
क्यों कि ये अपने ही विचार रखते है
तुम अपने भवन में
इनके शरीर को तो रख सकते हो,
किन्तु आत्मा को नहीं
क्योंकि इनकी आत्माएं
भविष्य के भवन में निवास करती है
जंहा तुम्हारा जाना संभव नहीं,
स्वप्न में भी नहीं
तुम इनके सामान बनने की,
चेष्टा कर सकते हो
किन्तु उन्हें अपने समान
बनने की लालसा मत रखो
क्योंकि जीवन पीछे की तरफ नहीं बढ़ता,
और न गुजरे हुए कम के साथ रुकता है
तुम वह धनुष हो
जिससे तुम्हारी संतान
जीवित बनो के रूप में छोड़ी जाती है
धनुर्धारी प्रभु अनंत की दिशा में
निशाना साधकर अपनी शक्ति से
तुम्हे झुका देता है
उसके बाण तीव्र गति से दूर जा पहुंचे
प्रभु के हाथो अपने झूकने के अनुभव को
आनंद का कारण बनने दो
क्योंकि, वह जितना प्यार
अपने छुट जानेवाले बाण से करता है
उतनाही प्यार अपने धैर्यवान धनुष से भी करता है


खलील जिब्रान
संकलन:प्रवीण कुलकर्णी


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हंस-दमयंती

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