Sunday, 18 April 2010

उम्र भर हम रहे शराबी से - मीर तक़ी 'मीर'


उम्र भर हम रहे शराबी से
दिल-ए-पुर्खूं की इक गुलाबी से


खिलना कम-कम कली ने सीखा है

उसकी आँखों की नीम ख़्वाबी से


काम थे इश्क़ में बहुत ऐ मीर

हम ही फ़ारिग़ हुए शताबी से

याँ हुये 'मीर' हम बराबर-ए-ख़ाक

वाँ वही नाज़-ओ-सर्गिरानी है।


संकलक:प्रवीण कुलकर्णी

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हंस-दमयंती

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