Sunday 9 May 2010

वतन के लिये - कैफ़ी आज़मी


यही तोहफ़ा है यही नज़राना
मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ
रंग में तेरे मिलाने के लिये
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन

पहले कब आया हूँ कुछ याद नहीं
लेकिन आया था क़सम खाता हूँ
फूल तो फूल हैं काँटों पे तेरे
अपने होंटों के निशाँ पाता हूँ
मेरे ख़्वाबों के वतन

चूम लेने दे मुझे हाथ अपने
जिन से तोड़ी हैं कई ज़ंजीरे
तूने बदला है मशियत का मिज़ाज
तूने लिखी हैं नई तक़दीरें
इंक़लाबों के वतन

फूल के बाद नये फूल खिलें
कभी ख़ाली न हो दामन तेरा
रोशनी रोशनी तेरी राहें
चाँदनी चाँदनी आंगन तेरा
माहताबों के वतन

संकलक:प्रवीण कुलकर्णी

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हंस-दमयंती

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