Sunday 9 May 2010

थरथरी सी है आसमानों में - फ़िराक़ गोरखपुरी


थरथरी सी है आसमानों में
जोर कुछ तो है नातवानों में

कितना खामोश है जहां लेकिन

इक सदा आ रही है कानों में

कोई सोचे तो फ़र्क कितना है

हुस्न और इश्क के फ़सानों में

मौत के भी उडे हैं अक्सर होश

ज़िन्दगी के शराबखानों में

जिन की तामीर इश्क करता है

कौन रहता है उन मकानों में

इन्ही तिनकों में देख ऐ बुलबुल

बिजलियां भी हैं आशियानों में

संकलक:प्रवीण कुलकर्णी

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हंस-दमयंती

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