कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की - मीर तक़ी 'मीर'
कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की
धूम है फिर बहार आने की
वो जो फिरता है मुझ से दूर ही दूर
है ये तरकीब जी के जाने की
तेज़ यूँ ही न थी शब-ए-आतिश-ए-शौक़
थी खबर गर्म उस के आने की
जो है सो पाइमाल-ए-ग़म है मीर
चाल बेडोल है ज़माने की
संकलक:प्रवीण कुलकर्णी
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